जानिये विशाखा दिशानिर्देशों का इतिहास :
➡️ 'विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान सरकार 1997 के महत्वपूर्ण मुकदमे से भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को महत्व प्राप्त हुआ।
➡️ यह मुकदमा सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के सामूहिक बलात्कार का था ।
➡️ एक महिला संगठन 'विशाखा' और 4 अन्य लोगों के एक सामूहिक मंच की ओर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश जारी किये थे ।
➡️ सन 2013 में यौन उत्पीड़न कानून पारित होने तक ये निर्देश यौन उत्पीड़न रोकने के लिए दिशानिर्देशक की भूमिका निभाते रहे। ये निर्देश जिन्हें विशाखा दिशा निर्देशों का नाम दिया गया जो 13 अगस्त 1997 को किए गए एक ऐतिहासिक न्यायिक फैसले का अंग थे।
➡️ इसमें कहा गया था कि यौन उत्पीड़न, लैंगिक समानता और व्यावसायिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
➡️ इसमें यौन उत्पीड़न की परिभाषा शामिल थी, जिसके अनुसार "ऐसा व्यवहार अपमानजनक हो सकता है और महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में बाधा पहुंचा सकता है।
➡️ इसमें यौन उत्पीड़न रोकने और इस पर काबू करने के तरीकों पर जोर दिया गया। जिसे याचिका पर सुनवाई के दिशा निर्देश पर जारी किये गया था।
इतने संघर्ष के बाद जो कानून बना उसका नाम है कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम 2013 इस लिंक पर क्लिक करके पढ़िए पूरा कानून !