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उपराष्ट्रपति ने जोर देकर यह कहा कि सूक्ष्म लैंगिक भेदभाव चिंताजनक है, लैंगिक न्याय के लिए पुरुष मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है, उपराष्ट्रपति ने महिलाओं से आग्रह किया, चुनौतियों का सामना करें और बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ें

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 "लक्षणात्मक विकृति" इन जैसी टिप्पणियां महिलाओं के खिलाफ हिंसा की बर्बरता को कम करके आंकती हैं और यह बेहद ही  शर्मनाक है- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़जी

लोकसभा और राज्य विधानसभाओंमें महिलाओं के लिए आरक्षण एक युगांतरकारी कदम है; अतीत के गौरव को वापस पाने के लिए यह एक बड़ा प्रयास है, उपराष्ट्रपति ने आगाह किया, इवेंट मैनेजमेंट के जरिए प्रतिष्ठित हैसियत हासिल करने वाले सभी स्वार्थी लोगों से सतर्क रहें, उन्होंने कहा कि , हाल के वर्षों में महिलाओं के विकास से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास में आमूलचूल बदलाव आ रहा  है

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़जी  ने आज पुरुष मानसिकता में बदलाव लाने और व्यापक लैंगिक संवेदनशीलता के लिए भी अपील की। दिल्ली के ताज पैलेस इस होटल में आज नेटवर्क १८ समूह द्वारा आयोजित "महिला सशक्तिकरण के लिए समग्र दृष्टिकोण" इस विषय पर शी शक्ति2024 में अपना संबोधन देते हुए, श्री धनखड़जी ने समाज में फैले सूक्ष्म लैंगिक भेदभाव पर ध्यान देने पर जोर दिया। 

लैंगिक न्याय के लिए पुरुषों की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है, उपराष्ट्रपतिजी  ने महिलाओं से यह आग्रह किया, चुनौतियों का सामना करें और बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ें

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़जी कहा कि  “हमारी महिलाएं आज शासन के प्रत्येक हिस्से में भागीदारी कर रही हैं। वे  समर्पण, प्रतिबद्धता और प्रतिभाओं  का पूर्ण उदाहरण दे रही हैं। लेकिन फिर भी  लैंगिक समानता अभी भी महिलाओंसे  बहुत दूर है। किसी भी व्यवस्था में, जिसमें मेरे सामने कि मौजूद व्यवस्था भी इसमें शामिल है,  किसी न किसी तरह से , यह लैंगिक समानता हमसे दूर ही होती जा रही है। लैंगिक भेदभाव स्पष्ट तौर से तो खत्म हो गया है, लेकिन यह अब सूक्ष्म रूपों में आ गया है। ये  सूक्ष्म रूप, जिससे आप लड़ नहीं सकते, जिसे हम आप सभी परिभाषित भी नहीं कर सकते और यही वह क्षेत्र है, जिस पर हमें सबसे ज्यादा प्रहार करना है। सूक्ष्म भेदभाव प्रत्यक्ष भेदभाव से कहीं अधिक ज्यादा  खतरनाक होता है। क्योंकि प्रत्यक्ष भेदभाव का आप सब विरोध कर सकते हैं। लेकिन सूक्ष्म भेदभाव का विरोध करना मुश्किल होता है। बड़े पैमाने पर पुरुषों की सोच में बदलावों  की जरूरत है। मानवीय गतिविधियों  के हर एक  पहलू में गैर-भेदभावपूर्ण समान अवसरपर  लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सबसे जरूरी है।”

महिलाओंके खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर की गई "लक्षणात्मक विकृति" जैसी टिप्पणियों को बेहद शर्मनाक और ऐसे जघन्य अपराधों की बर्बरता को कम करने के आंकने के समान बताते हुए, श्री धनखड़जी ने कहा, "हमें इस तरह के पागलपनसे  भरे विचारों को पूरी तरह से नकारना और तिरस्कार करना चाहिए, जो कि कोलकाता में हुए अस्पताल में ड्यूटी के दौरान एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या जैसी  बर्बरता को कम करके आंकते हैं और कुछ लोग इसे लक्षणात्मक विकृति कहते हैं, यह हमारे लिए  कितने शर्म की बात है। हम अपनी अंतरात्मा के प्रति भी  जवाबदेह हैं, हमारा हृदय द्रवित होना ही चाहिए। ये मुद्दा अब प्रायश्चित्त करनेका है, सुधार की मुद्रा में आने का है।”

लोकसभा व  राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के प्रावधान की सराहना करते हुए, श्री धनखड़जी  ने इस बात पर जोर दिया कि यह एक युगांतरकारी कदम है। समग्र महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह अब तक का सबसे प्रभावशाली कदम है। उन्होंने कहाकि , "यह सभीं नीतियों के विकास और विधायिका व कार्यपालिका में ठोस भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा"।

इवेंट मैनेजमेंट के जरिए प्रतिष्ठित हैसियत हासिल करने वाले सभी स्वार्थी लोगों से सतर्क रहने के लिए आगाह करते हुए श्री धनखड़जी  ने रेखांकित किया, ''पत्रकारिता से लेकर हर सभी क्षेत्रों में, हमारे देश में, हमने लोगों को प्रतिष्ठित व्यक्ति का दर्जा दे रखा  है, नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है, किस लिए? क्योंकि वे इवेंट मैनेजमेंट में अच्छे हैं इसलिए ?या  क्या वे उनके मामले ठीक तरह से सुलझाते हैं? वो इसलिए महान बन जाते हैं क्योंकि हम सतर्क नहीं हैं, फिर वे हमारे मार्गदर्शक बन जाते हैं और फिर वे यह कहते हैं कि ओह... जो बांग्लादेश में हुआ वो यहां पर भी हो सकता है। मैं आपसे आज यह कहता हूं कि,  हमारी सोच में बदलाव यह ना ही केवल लैंगिक न्याय के लिए जरूरी है, बल्कि हमारी  सोच में बदलाव आना अब राष्ट्रवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के लिए भी बहुत  ही जरूरी है। हम और अब  लोगों को अपने स्वार्थी और पक्षपातपूर्ण हितों के लिए दिन-बो -दिन राष्ट्रीय हितों  की अनदेखी करने की अनुमति कभी नहीं दे सकते! इस देश में हमें अब यह समझना ही होगा कि हम ५००० वर्ष से भी अधिक पुरानी सभ्यता हैं, जो सद्गुणों और उदारता से गहराई से जुड़ी हुई है...''

अपने संबोधन में श्री धनखड़जी  ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि,  हाल ही के वर्षों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न सकारात्मक कार्यों के जरिए प्रयास किए जा रहे हैं व  महिला विकास से महिला नेतृत्व वाले विकास में आमूलचूल बदलाव भी आ रहा  है। उन्होंने कहा कि अब बेटी पढ़ाओ, मुद्रा योजना जैसे  व  रक्षा इन सभी क्षेत्र में महिलाओं के प्रवेश और जैसे अंतरिक्ष, समुद्र या स्थल, इन सभी क्षेत्रों में उनके योगदान ने परिदृश्य को बड़े पैमाने पर बदल दिया है।

उन्होंने यह कहाकि  "मैं ये नहीं कहूंगा कि बीते एक दशक में ये आमूलचूल बदलाव आया है। लोग इसे बस एक राजनीतिक बिंदु के रूप में लेंगे, लेकिन ये ऐसा ही है- बेटी पढ़ाओ, मुद्रा ने सभी महिलाओं को एक प्रकार की स्वतंत्रता दी है। वे अब नौकरी देने वाली हो गई हैं। वो स्वयं को नौकरी दे रही हैं और दूसरों को भी  नौकरी दे रही हैं- एक बड़ा बदलाव और इसके चलते ये आदर्श बदलाव महिलाओं के विकास से सभी महिला के नेतृत्व में विकास तक पहुंच गया है। कुछ पुरुषों को छोड़ दें, तो बाकी सभी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से बजट प्रस्तुत किए जाने की प्रशंसा ही की है। उन्होंने सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री बनकर इतिहास ही रचा है, और उन्होंने मोरारजी देसाईजी  को भी पीछे छोड़ते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया है।"

महिलाओं से अपील करते हुए श्री धनखड़जी  ने कहा, ''कृपया महिलाए उन चुनौतियों का सामना करें और आपकी खुद कि  प्रगति में आने वाली हर बाधाओं को पार करके आगे बढ़ें और बढ़ते रहे  और मैं आपको बता दूं कि यह बाधाएं तो कुछ भी नहीं हैं, केवल आपको बीएस अब नेतृत्व करना है। अब केवल बदलाव का समय आ गया है, आपको बदलाव चाहने की बजाय बदलाव लाने की चाह करनी होगी। आप अब केवल गाड़ी में बैठने वाली यात्री नहीं हैं, आप अब ड्राइवर भी  हैं और इसलिए इसे चलाएं।''

भारत की सभी संरचनात्मक लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ध्यान खींचते हुए उपराष्ट्रपति जी ने कहा कि गांव के सभी स्तरों  पर, प्रादेशिक स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर भारत का लोकतंत्र संरचनात्मक है और १.४ मिलियन महिलाएं पंचायती राज में निर्वाचित होती हैं।

उपराष्ट्रपति जी ने कहा "लोकतंत्र अपने आप में एक एसा  तंत्र है जो न तो केवल अमीर वर्ग के लिए है, ना  ही विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए है, न तो विशेषाधिकार प्राप्त वंश के लिए है, लोकतंत्र प्राथमिक रूप से किसके लिए है? ये उनसभी के  लिए है जो कमजोर हैं, जो हर चुनौतियों का सामना करते हैं, जिनको सहारे की जरूरत है, ताकि असली प्रतिभा जो चुनौतियों के कारन  से बाधित है, वह दूर हो जाए।"

लैंगिक समानता के लिए शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़जी ने कहा, "मैं शिक्षा का उत्पाद हूं! शिक्षा ही एक एसा प्रारंभिक बिंदु है. जो शिक्षा मिलेगी तो असमानता की जंजीरें टूट जाएंगी। कई लोगों ने ठीक ही कहा है, आप जब एक  लड़के को शिक्षित करते हैं - तो आप एक को ही शिक्षित करते हैं। अगर आप लड़की को शिक्षित करते हैं - तो आप एक पुरे  परिवार को शिक्षित करते हैं और ये जमीनी हकीकत है। मैंने हमेशा से ये माना है, और यही जाना है और मुझे पूरा यकीन है कि कोईभी  इससे इनकार नहीं कर सकता। समाज में असमानताओं को दूर करने, हर जगह समान अवसर पैदा करने और समानता लाने के लिए शिक्षा ही  सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकारी तंत्र है। यह बड़े पैमाने पर किया जा रहा है और इसका परिणाम भी उत्साहजनक हैं।"

 

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एमजी/एआर/एमएम/एसके प्रविष्टि तिथि: 16 SEP 2024 by PIB Delhi(रिलीज़ आईडी: 2055622) आगंतुक पटल : 37

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