राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा
भारत में विशाखा दिशानिर्देश पहला कानूनी कदम है जिसके आधार पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने और इसके समाधान की दिशा में एक विस्तृत ढाँचे की रूपरेखा बनी। इससे इस बात को मान्यता मिली कि कार्यस्थल पर
महिलाओं का यौन उत्पीड़न,
उनके लैंगिक समानता के अधिकार,
जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार और
कोई भी व्यवसाय चुनने के अधिकारों का उल्लंघन करता है
तो वह अपराध कहलाएगा l
उल्लेखनीय है की कामकाजी महिलाओं के अधिकार को विशाखा दिशानिर्देश से स्पष्ट कानूनी आधार मिला इसलिए विशाखा दिशानिर्देशों पर आधारित न्यायिक फैसले, और इन दिशानिर्देशों के परिपालन की स्थिति के बारे में आगे वस्तृत रूप से चर्चा की गई है
जानिये विशाखा दिशानिर्देशों का इतिहास :
'विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान सरकार 1997 के महत्वपूर्ण मुकदमे से भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को महत्व प्राप्त हुआ। यह मुकदमा था सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के सामूहिक बलात्कार का एक महिला संगठन 'विशाखा' और 4 अन्य लोगों के एक सामूहिक मंच की ओर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश जारी किये, सन् 2013 में यौन उत्पीड़न कानून पारित होने तक ये निर्देश यौन उत्पीड़न रोकने के लिए दिशानिर्देशक की भूमिका निभाते रहे। ये निर्देश जिन्हें विशाखा दिशा निर्देशों का नाम दिया गया 13 अगस्त 1997 को किए गए एक ऐतिहासिक न्यायिक फैसले का अंग थे।
इसमें कहा गया था कि यौन उत्पीड़न, लैंगिक समानता और व्यावसायिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें यौन उत्पीड़न की परिभाषा शामिल थी, जिसके अनुसार "ऐसा व्यवहार अपमानजनक हो सकता है और महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में बाधा पहुंचा सकता है। इसमें यौन उत्पीड़न रोकने और इस पर काबू करने के तरीकों पर जोर दिया गया। याचिका ने सुनवाई के दिशा निर्देश पर जारी किये गये थे
कार्यस्थल
पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व
निवारण) अधिनियम 2013
सन 2012 में यौन उत्पीड़न और महिलाओं पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते भारत में इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की गई। इसी संदर्भ में महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा दिलाने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निदान की दिशा में सन् 2013 में यह कानून बनाया गया । इस अधिनियम के अनुसार यौन उत्पीड़न महिलाओं के समानता के मूल अधिकार, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 में दिए गए हैं का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है; धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थल के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है; और जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इस कानून में यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए सम्बंधित पक्षों के उपयोग हेतु परिभाषाएं और साधनों का जिक्र है, जिनका ब्यौरा अध्याय 3, 4, 5, 6 में दिया गया है। कानून के 28वें खण्ड में यह बताया गया है कि इसके प्रावधान फिलहाल किसी भी अन्य प्रचलित कानून के अतिरिक्त लागू होंगे, ना कि उनका अन्मूलन करके। इसलिए इस मार्गदर्शक पुस्तिका को विशाखा दिशानिर्देशों और सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य नियमों के साथ मिला कर पढ़ा जाना चाहिए।
यह अधिनियम कहता है कि
कोई भी न्यायालय इस कानून या इसके नियमों के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जब तक कि पीड़ित महिला शिकायत दर्ज नहीं करती, या फिर आंतरिक शिकायत समिति (ICC) और स्थानीय शिकायत समिति (LCC) द्वारा अधिकृत व्यक्ति शिकायत दर्ज नहीं करता।
भारत का संविधान
भारत के संविधान का मूल उद्देश्य है अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वाधीनता, समानता, भाईचारा और इज्जत सुनिश्चित करना, जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख किया गया है।
संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकार:
अनुच्छेद 14.
कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है, इसमें लैंगिक समानता भी शामिल है जो सर्वव्यापी रूप से मान्यता प्राप्त मूल अधिकार है।
अनुच्छेद 15,
धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
अनुच्छेद 19 (1),
सभी नागरिकों को कोई भी व्यवसाय चुनने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 21
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिष्ठापित करता है।
महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 51
राज्य अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियों का सम्मान कायम करने की दिशा में प्रयत्न करेगा।
अनुच्छेद 253
अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूचि विषय पर कानून बना सकती है।
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भारतीय
दंड संहिता (IPC)
धारा 292: "यदि किसी भी व्यक्ति को अश्लील पैम्फलेट, दस्तावेज लेखन, रेखाचित्र, तस्वीर प्रतिरूप, आकृति या फिर दूसरी अश्लील सामग्री बेचते किराए पर देते वितरित करते, अथवा सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करते पाया जाता है, तब उसको पहली बार दोषी पाये जाने पर दो साल तक का कारावास और उसके साथ दो हजार रूपए तक के जुर्माने का तथा दूसरी बार या उससे आगे दोषी पाए जाने की स्थिति में पांच साल तक के कारावास और उसके साथ-साथ पांच हजार रूपए तक के जुर्माने का दंड दिया जाएगा।
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धारा 293: "यदि कोई व्यक्ति ऐसी किसी प्रकार की अश्लील सामग्री जिसका विवरण धारा 292 में दिया गया है, किसी अन्य व्यक्ति को बेचता किराए पर देता, बांटता दिखाता या उस तक पहुंचाता हो तब, पहली बार उसको ऐसा करने पर तीन साल तक के कारावास और दो हजार रुपए तक के जुर्माने का दंड दिया जाएगा तथा दूसरी मर्तबा या उसके आगे भी कुसूरवार पाए जाने पर तीन साल तक के कारावास और पांच हजार रूपए तक के जुर्माने का दंड दिया जाएगा।
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धारा 294 "जो भी व्यक्ति (1) किसी सार्वजनिक स्थल पर या उसके निकट, कोई अश्लील काम करे, या (ii) कोई अश्लील गौत, कविता या शब्द मुंह से निकालता हो जिससे औरों को परेशानी होती है तब उसको तीन महीने का कारावास या जुर्माने का दंड मिलेगा या फिर दोनों ही बातें एक साथ लागू होंगी।
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धारा 354: "जो भी व्यक्ति किसी महिला के ऊपर उसका शील भंग करने के उद्देश्य से, अथवा यह जानते हुए भी कि उसके ऐसे आचरण से महिला का शील भंग होगा, उसपर हमला या फिर अनुचित बल प्रयोग करता है, तब दोनों में से किसी भी कोटि में किए गए अपराध के लिए उसे दो साल तक के कारावास या जुर्माने का दंड मिलेगा या फिर दोनों बातें एक साथ लागू होंगी।
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धारा 354 A "भारतीय दंड संहिता में यह धारा कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013 को अध्यक्षीय स्वीकृति मिलने के बाद जोड़ी गई। संशोधित आपराधिक कानून अधिनियम (amended criminal law act). 2013 हाल ही में शामिल की गई इस धारा के जरिए यौन उत्पीड़न की परिघटना को मान्यता प्रदान करता है एवं इसके लिए दंड का प्रावधान करता है।
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भारतीय दंड संहिता के तहत यौन उत्पीड़न की परिभाषा एवं दंड के प्रावधान निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार का आचरण करने वाला पुरूष यौन उत्पीड़न के अपराध का दोषी माना जाएगा:
1. अवांछनीय एवं स्पष्ट यौन संकेतों को व्यक्त करने वाले शारीरिक स्पर्श एवं चेष्टाएं; अथवा
2. यौन संबंध कायम करने की मांग या अनुरोध; अथवा
3. किसी महिला की इच्छा के विपरीत उसे अश्लील सामग्री दिखाना; अथवा
4. यौन मंतव्यों वाली टिप्पणियां करना ● उपनियम (1), (2) अथवा (3) में उल्लिखित अपराधों के दोषी पुरुष को दिया जानेवाला दंड: तीन साल तक का सश्रम कारावास या जुरमाना या फिर दोनों।
उपनियम 4, में उल्लिखित अपराध के दोषी पुरुष को दिया जाने वाला दंड एक साल तक का कारावास या जुरमाना या फिर दोनों।
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धारा 354 C (Voyeurism) तांक झांक करना: "फिर भी कोई भी पुरुष जो किसी ऐसे स्थान पर निजी कार्य में संलग्न किसी महिला को ऐसी स्थिति में देखता है या उसकी तस्वीर उतारता है, जहाँ आम तौर पर महिला को अपराधी अथवा अपराधी के इशारे पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा खुद के देखे जाने की अपेक्षा नहीं हो या फिर ऐसी तस्वीरों को प्रसारित करता है। ऐसे व्यक्ति को पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन से सात साल तक के कारावास और जुरमाना भरने का तथा आगे दूसरी बार दोषी पाए जाने पर एक साल तक का कारावास और जुर्माने का दंड दिया जाएगा।
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धारा 354 D (पीछा करना -stalking): "किसी पुरुष को पीछा करने के अपराध का दोषी माना जाएगा यदि वह (1) किसी महिला द्वारा स्पष्ट रूप से अनिच्छा व्यक्त करने के उपरान्त भी उक्त महिला के साथ अंतरंग संपर्क कायम करने के लिए लगातार उसका पीछा करता है अथवा संपर्क कायम करने का प्रयास करता है, या फिर (2) किसी महिला विशेष के इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार साधनों के प्रयोग पर निगरानी रखता है, अथवा (3) किसी महिला के ऊपर कुछ इस प्रकार से निगरानी रखता है या फिर उसकी जासूसी करता है जिससे उस महिला के मन में हिंसा का भय या गम्भीर खतरे
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"निजी कार्य" से आशय है कि ऐसे स्थान पर, अथवा ऐसी परिस्थितियों के बीच किसी महिला को देखना, जहाँ पर एकांत होने की महिला की अपेक्षा सर्वथा उचित हैं, और जहां पर पीड़ित महिला के गुप्तांग, शरीर का पृष्ठवर्ती भाग या स्तन अनावृत हों, अथवा उसने केवल अन्तर्वस्त्र धारण कर रखे हों; या फिर पीड़ित महिला शौचालय का इस्तेमाल कर रही हो, या इस प्रकार की यौन क्रिया में संलग्न हो जिसे सामान्यतया सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया जाता। इसमें यह बात भी शामिल है कि पीड़ित महिला यदि अपनी तस्वीर उतारने की सहमति तो देती है लेकिन तस्वीर किसी तीसरे व्यक्ति के हाथ में देने की बात पर सहमत नहीं होती और यदि तस्वीरों अथवा कार्यों को प्रसारित किया जाता है तब इस धारा के तहत ऐसे प्रसारण को अपराध माना जाए का अंदेशा या फिर संकट महसूस होता है, अथवा जिससे महिला कि मानसिक शांति भंग होती है। इनमें से किसी भी आचरण के दंडस्वरूप एक से पांच साल तक का कारावास और जुर्माना भुगतना पड़ेगा।
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धारा 375 (बलात्कार): किसी व्यक्ति को बलात्कार की वैधानिक परिभाषा के अनुरूप इस कृत्य का अपराधी माना जाएगा यदि
1 यह कृत्य महिला की सहमति के बगैर हुआ है।
2 उसकी इच्छा के विपरीत हुआ है।
3 यदि मृत्यु अथवा क्षति का भय दिखाकर उसकी सहमति हासिल की जाती है।
4 यदि महिला के मादक दवाओं अथवा शराब के नशे में होने के दौरान उसकी सहमति ली जाती है।
5 उसके पति होने का स्वांग रचकर उसकी सहमति प्राप्त की जाती है।
6 जब वह पागलपन की स्थिति में हो अथवा मानसिक रूप से कमजोर हो, और यह समझने की स्थिति में नहीं हो कि पुरूष उसके साथ क्या करने जा रहा है।
7 सहमति अथवा असहमति से जब उसकी आयु 18 वर्ष से कम हो जब वह अपनी सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो
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धारा 509 महिला का शील भंग करने के उद्देश्य से अथवा यह जानते हुए भी कि इस प्रकार का आचरण करने से महिला की मर्यादा भंग होगी, सार्वजनिक स्थल पर हमले में से किसी भी कोटि के अपराध के लिए दंड स्वरूप एक से पांच साल तक के कारावास व जुर्माने का प्रावधान है। किसी महिला का शील-भंग, उस पर हुए हमले या उसके अपमान की घटनाओं को सुनिश्चित करने की सबसे अच्छी कसौटी है
1 महिला का शील भंग करने की नियत
2 यह जानकारी होना कि अपराधी के ऐसे आचरण से उसका शील भंग होगा
3 अपराधी का व्यवहार कुछ ऐसा हो, जिसे महिला के भद्रता-बोध को ठेस पहुंचाने वाले आचरण के रूप में महसूस किया जा सके।
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महिलाओं का अश्लील चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986
इस अधिनियम के तहत अगर एक व्यक्ति किसी दूसरे को महिलाओं का अश्लील चित्रण करने वाली किताबों, चित्रों, तस्वीरों फिल्मों परचों, पैकेजों द्वारा परेशान या उत्पीड़ित करे तो उसे कम से कम दो साल की सजा हो सकती है। भाग 7 ( कंपनियों का अपराध) कहता है कि जिन कंपनियों में महिलाओं का अश्लील चित्रण" (जैसे पोर्नोग्राफी) कंपनी परिसर में किया गया हो, उन्हें भी अधिनियम के तहत दोषी करार देते हुए उसे भी कम से कम दो साल की सजा हो सकती है।